धर्म कोई चॉइस नहीं है, ये हमे विरासत में ही अपने माता-पिता से मिला होता है और हम उसे अपने नाम तक में जोड़ देते हैं ये बताने के लिए की ये मुस्लिम नाम ये हिन्दू नाम और इसी के साथ हमारे बाप-दादाओं ने भी ज़िंदगी काटी और जब तक यह दुनिया रहेगा 1 % को छोड़ अधिकतर लोग ऐसे ही जीवन काटेंगे क्योंकि अपनी निराशा बांटने के लिए उन्हें कोई चाहे जो उनके साथ हो उनको सुनने के लिए और वह दुःख सुनता है ऐसा हम सब मानते हैं, इसलिये दोहा भी प्रसिद्ध है -दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करें न कोय, जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे का होय।
दूसरी बात यह है कि मां-बाप को कभी पूछना जब तुमने हमारे लिए मन्नतें मांगी थी क्या ये बोला था भगवान से या अल्लाह से मुझे हिन्दू बच्चा दो या मुसलमान बच्चा दो।ये समझ लो सब समझ आ जायेगा। सबने यही दुआ मांगी होगी स्वस्थ बच्चा दो ज्यादा किया होगा तो यही कहा होगा कि लड़का या लड़की दो। पर
यहाँ आपको भड़काने वाला मारने वाला बस्स एक धर्म के नाम से आपको भड़का देता है और आप लोग भड़क जाते हो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। हम सबको शर्म से डूब कर मर जाना चाहिए जो नफ़रत को जीते हैं और दूसरों में भी उतारने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे लोगों से खुद दूर हो जाइये जो नफरत परोसते हैं और इंसानियत की बात छोड़कर धर्म का झंडा लिए खड़े हो जाते हैं।





डॉ. रज़िया सहायक प्रोफेसर, हिंदी विभाग, विज्ञान एवं मानविकी संकाय, एस.आर.एम.आई.एस. टी, तमिलनाडु










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